परमात्मा के हाथ से कभी गलत निर्माण नहीं होता। इसीलिए हमें अपने मनुष्य होने पर गर्व करना चाहिए। परमात्मा ने हमें बनाते समय एक चीज दी है, वह है प्रसन्नता। क्योंकि मनुष्य बनाने के बाद ईश्वर स्वयं बहुत प्रसन्न हुआ। उसने यह प्रसन्नता मनुष्य में स्थानांतरित कर दी।परमात्मा ने हमें बनाया, अब हमें अपनी परिस्थितियों को बनाना है। इनसे दो चीजें जुड़ी हैं - तकलीफ और सुविधा। जिस परिस्थिति को हम बदल सकते हैं उसे जरूर बदल दें। पर यह समझ में आ जाए कि यह बदली नहीं जा सकती, तो उसे प्रसन्नता से स्वीकार करें। उदास बिल्कुल न हों। उदासी का अर्थ है हाथ में पत्थर लेकर परमात्मा की ओर उछालना। मनुष्य की उदासी, प्रसन्नता देने वाले परमात्मा की अवमानना है।आपने उस पर से भरोसा छोड़ा, तभी उदासी आई। उदासी आने पर तीन काम जरूर करिए - एक तो अपनी शरीर को चुस्त बना लें। शरीर जितना स्फूर्तिभरा होगा, उदासी उतनी भीतर कम फैलेगी। दूसरा, अच्छे विचारों को अंदर लाएं और बुरे विचार बाहर फेंकें। तीसरा, चिंतित बिल्कुल न हों। उदासी घिरने लगे तो सीधे खड़े हो जाएं। दोनों पैरों और पंजों को चिपका लें, हाथ को जोड़ते हुए छाती से टिका लें।अपना सारा ध्यान मूलाधार चक्र पर जमा लें और सोचें कि आपकी पूरी चेतना वहीं टिक गई है। आपके भीतर समुद्र जैसी लहरें उठ रही हैं। समुद्र अपनी गहराई में सबकुछ उतार लेता है। पांच मिनट बाद आप उदासी से मुक्त होने लगेंगे। उदास रहकर अपने और परमात्मा से रिश्ते का अपमान न करें।
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