सूर्य स्तुति !!
प्रथमहि रवि कहं नावौ माथा। करहु कृपा जन जाति अनाथा।।
हे आदित्य दिवाकर भानू। मैं मति मन्द महा अज्ञानू।।
अब निज जन कहं हरहू कलेशा। दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकार। अर्क मित्र अघ ओघ क्षमाकर।।
चन्द्र स्तुति !!
शशि, मय, रजनीपति, स्वामी। चन्द्र, कलानिधि नमो नमामी।।
राकापति, हिमांशु, राकेशा। प्रणवत जन नित हरहु कलेशा।।
सोम, इन्दुश्, विधु, शान्ति सुधाकर। शीत रश्मि, औषधी, निशाकर।।
तुमहीं शोभित भाल महेशा। शरण-शरण जन हरहु कलेशा।।
मंगल स्तुति !!
जय जय जय म ल सुखदाता। लोहित भौमादित विख्याता।।
अंगारक कुज रूज ऋणहारी। दया करहु यहि विनय हमारी।।
हे महिसुत दितीसुत सुखरासी। लोहितांग जग जन अघनासी।।
अगम अमंगल मम हर लीजै। सकल मनोरथ पूरण कीजै।।
बुध स्तुति !!
जय शशिनन्दन बुध महाराजा। करहु सकल जन कहं शुभ काजा।।
दीजै बुद्धि सुमति बल ज्ञाना। कठिन कष्ट हरि हरि कल्याना।।
हे तारासुत रोहिणि नन्दन। चन्द्र सुवन दुःख दूरि निकन्दन।।
पूजहू आसदास कहं स्वामी। प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।।
बृहस्पति स्तुति !!
जयति जयति जय श्री गुरू देवा। करौं सदा तुम्हारो प्रभु सेवा।
देवाचार्य देव गुरू ज्ञानी। इन्द्र पुरोहित विद्या दानी।।
वाचस्पति वागीश उदारा। जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा। करहु सकल विधि पूरण कामा।।
शुक्र स्तुति !!
शुक्रदेव तव पद जल जाता। दास निरन्तर ध्यान लगाता।।
हे उशना भार्गव भृगुनन्दन। दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी। हरहू नेष्ट ग्रह करहु सुकारी।।
तुहि पण्डित जोषी द्विजराजा। तुम्हारे रहत सहत सब काजा।।
शनि स्तुति !!
जय श्री शनि देव रवि नन्दन। जय कृष्णे सौरि जगवन्द।।
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा। बभ्रु आदि कोणस्थल लामा।।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा। छण महं करत रंक छण राजा।।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला। करहु विजय छाया के लाला।।
राहु स्तुति !!
जय जय राहु गगन प्रविसइया। तुम ही चन्द्रादित्य ग्रसइया।।
रवि शशि अरि स्वर्भानू धारा। शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।।
सैंहिंकेय निशाचर राजा। अर्धकाय तुम राखहु लाजा।।
यदि ग्रह समय पाय कहुं आवहु। सदा शान्ति रहि सुख उपजावहु।।
केतु स्तुति !!
जय जय केतु कठिन दुखहारी। निज जन हेतु सुमंगलकारी।।
ध्वजयुत रूण्ड रूप विकराला। घोर रौद्रतन अधमन काला।।
शिखी तारिका ग्रह बलवाना। महा प्रताप न तेज ठिकाना।।
वान मीन महा शुभकारी। दीजै शान्ति दया उरधारी।।
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